वो तुम्हारी पहली मुस्कान..
वो हमारी पहली पहचान..
तुम से मिलने दिल का बहकना..
बमुश्किल दिल को मेरा थामना..
भरी धूप में वो छांव का एहसास..
पुनः मिलने की अधबुझी प्यास..
बारिश की बूंदों का मोतियों सा दिखना..
तेरी भींगी लटें और मेरा बहकना..
वो रात भर की बातें सहर का इंतज़ार..
कुछ पल को ही सही तड़पना बेक़रार..
सुबह से पहले सुनना तेरी आवाज़..
निगाहों में दिखाना वो परवाज़..
'ये तो होना ही था' तुम्हारा कहना..
मेरा ठिठकना और आगे निकलना..
आँखों से सुनना वो आँखों की बातें..
वो बारिश की शाम और वो मुलाकातें..
हाथों को थाम उन गलियों से गुजरना..
रूठना मानना लड़ना झगड़ना..
'नच के तू आएगा' तेरा वो कहना..
मेरा इन बातों को सच साबित करना..
तेरा कहाँ वो तीन चमत्कारी शब्द..
अब भी गुनते हैं कानों में..
तेरे बगैर निशब्द...
तेरे बगैर निशब्द..
Thursday, January 20, 2011
अंतिम शब्द........
तुम सोना स्वप्निल नींदों में..
वो श्याह संजोता रहेगा..
सुकून तेरे दामन में सदा रहे..
दिल से वो दुआ करेगा..
तुम ज़माने के गीत सुनना गुनगुनाना..
वो तो विरह राग गाता चला जायेगा..
तुम राजमहल की रानी हो..
वो धूल उड़ाता जायेगा..
क्या खोकर तुमको पाया था..
कोई न ये समझ पायेगा..
रोको न अब इन कदमों को..
जब निकले हो तो चले जाओ..
कांटें न मिले राहों में कभी..
वो खुद को बिछाता जायेगा..
बस एक ख्वाब पूरा न हुआ..
शायद अब पूरा भी न हो..
मरने से पहले वो तेरे..
एक अश्रुबून्द को तरसेगा..
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वो श्याह संजोता रहेगा..
सुकून तेरे दामन में सदा रहे..
दिल से वो दुआ करेगा..
तुम ज़माने के गीत सुनना गुनगुनाना..
वो तो विरह राग गाता चला जायेगा..
तुम राजमहल की रानी हो..
वो धूल उड़ाता जायेगा..
क्या खोकर तुमको पाया था..
कोई न ये समझ पायेगा..
रोको न अब इन कदमों को..
जब निकले हो तो चले जाओ..
कांटें न मिले राहों में कभी..
वो खुद को बिछाता जायेगा..
बस एक ख्वाब पूरा न हुआ..
शायद अब पूरा भी न हो..
मरने से पहले वो तेरे..
एक अश्रुबून्द को तरसेगा..
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Wednesday, January 19, 2011
कुछ इस तरह ज़ेहन में वो बस गए.....
खैफ़ बरदोश मत बैठ बादलों के इंतजार में न बरसे हैं न बरसेंगे;
ज़माने की बात मत कर उम्रें निकल जाती है इश्क-ए-इंतजार में..
हवाओं के रुख को रुखसार पे मोड़ने से क्या होगा;
अब तो वो मुश्क भी नहीं मिलती है इश्क-ए-बयार में...
साथ छूटा हाथ छूटा जिंदगी के उस मोड़ पे;
अब तो बस सीधे रास्ते मिलते नहीं वफ़ा-ए-प्यार में...
ओस की बूंदों को कभी अश्क न समझा करो;
शबनम भी अब नहीं मिलती सहर-ए-क्वार में...
अब फलसफे से क्या क्या हासिल होगा "सहर";
तुम तो जिंदगी हार बैठे इम्तहान-ए-प्यार में...
ज़माने की बात मत कर उम्रें निकल जाती है इश्क-ए-इंतजार में..
हवाओं के रुख को रुखसार पे मोड़ने से क्या होगा;
अब तो वो मुश्क भी नहीं मिलती है इश्क-ए-बयार में...
साथ छूटा हाथ छूटा जिंदगी के उस मोड़ पे;
अब तो बस सीधे रास्ते मिलते नहीं वफ़ा-ए-प्यार में...
ओस की बूंदों को कभी अश्क न समझा करो;
शबनम भी अब नहीं मिलती सहर-ए-क्वार में...
अब फलसफे से क्या क्या हासिल होगा "सहर";
तुम तो जिंदगी हार बैठे इम्तहान-ए-प्यार में...
Sunday, January 9, 2011
पुनर्मिलन
बड़े दिन बाद बड़ी उदास लगी शाम
पहलू में उनका दामन...
ओठों पे खामोशियाँ...
लबों पे दूरियों की हिचक...
आँखों में यादों की...
ख्यालों की...
ज़ज्बातों की...
अनचाहे मुलाकातों की...
कुछ हया सिमटी थी पड़ी...
कुछ पल दुनिया ख़ाली सी लगी...
वो पल ख़ाली थे...
वो लम्हें उदास थी...
हर धड़कन को उनकी दूरियों का एहसास था...
आंसू का कतरा न बहा...
सैलाब आ गया...
उन्हें देखा तो लगा..
माहताब आ गया...
ख्वाबों की लर्ज़िशें...
दूरियों की बंदिशें...
मेरी बातों पे उनकी ख़ामोशी...
उनकी बातों मेरा मुस्कराना...
याद आई वो बातें जब अंतिम बार मिले थे..
फिर कब मिलोगे इन शब्दों को उनके लब हिले थे...
जब फिर से मिला तो उन बातों की राख भी न थी...
उनकी ख़ामोशी में वो ज़ज्बात भी न थी....
बढ़ी खामोश थी वो अंतिम मिलन की शाम...
बड़ी उदास है ये पुनर्मिलन की शाम...
बड़े दिन बाद बड़ी उदास लगी शाम....
पहलू में उनका दामन...
ओठों पे खामोशियाँ...
लबों पे दूरियों की हिचक...
आँखों में यादों की...
ख्यालों की...
ज़ज्बातों की...
अनचाहे मुलाकातों की...
कुछ हया सिमटी थी पड़ी...
कुछ पल दुनिया ख़ाली सी लगी...
वो पल ख़ाली थे...
वो लम्हें उदास थी...
हर धड़कन को उनकी दूरियों का एहसास था...
आंसू का कतरा न बहा...
सैलाब आ गया...
उन्हें देखा तो लगा..
माहताब आ गया...
ख्वाबों की लर्ज़िशें...
दूरियों की बंदिशें...
मेरी बातों पे उनकी ख़ामोशी...
उनकी बातों मेरा मुस्कराना...
याद आई वो बातें जब अंतिम बार मिले थे..
फिर कब मिलोगे इन शब्दों को उनके लब हिले थे...
जब फिर से मिला तो उन बातों की राख भी न थी...
उनकी ख़ामोशी में वो ज़ज्बात भी न थी....
बढ़ी खामोश थी वो अंतिम मिलन की शाम...
बड़ी उदास है ये पुनर्मिलन की शाम...
बड़े दिन बाद बड़ी उदास लगी शाम....
Saturday, January 8, 2011
khamoshi
खामोश नज़रें...
चुप सी ज़ुबान.....
हम थे तुम्हारे पास बैठे...
एक शहनाई सी बज रही थी...
उन ख्वाबों की दास्तान भी बड़ी अजीब थी.
आज भी उस की खुश्बू मेरी साँसों में घुली है...
जो उन धड़कनों के पास थी...
अब तुम ना हो...
ना ही वो सपने हैं....
फिर भी क्यूँ अब भी लगता है...
जैसे कल की ही ये बातें हैं...
जब हम पहली बार मिले थे...
चुप सी ज़ुबान.....
हम थे तुम्हारे पास बैठे...
एक शहनाई सी बज रही थी...
उन ख्वाबों की दास्तान भी बड़ी अजीब थी.
आज भी उस की खुश्बू मेरी साँसों में घुली है...
जो उन धड़कनों के पास थी...
अब तुम ना हो...
ना ही वो सपने हैं....
फिर भी क्यूँ अब भी लगता है...
जैसे कल की ही ये बातें हैं...
जब हम पहली बार मिले थे...
Thursday, January 6, 2011
माँ.......
जिंदगी की राहों में तेरा साथ छूट गया..
तेरी ममता खो गयी...
तेरा प्यार खो गया...
रह गयीं वो बचपन की यादें...
वो लोरी...वो बातें...
वो काजल के टीके की निशानी...
बचपन की बातें तेरी ज़ुबानी...
आँसू छुपाकर तेरा मुसकराना...
कहना बमुश्किल...
जहाँ रहो खुश रहना...
ये कहते कहते...
उन होठों का थरथराना...
काँपते हाथों से आशीर्वाद देना...
जहाँ हूँ...
जैसा हूँ...
खुश हूँ...
कुछ भी हो...
आख़िर तेरा बेटा हूँ....
खुशी में..गम में...
तुम्हें सदा याद करता हूँ...
आख़िर तेरा बेटा हूँ....
तेरी ममता खो गयी...
तेरा प्यार खो गया...
रह गयीं वो बचपन की यादें...
वो लोरी...वो बातें...
वो काजल के टीके की निशानी...
बचपन की बातें तेरी ज़ुबानी...
आँसू छुपाकर तेरा मुसकराना...
कहना बमुश्किल...
जहाँ रहो खुश रहना...
ये कहते कहते...
उन होठों का थरथराना...
काँपते हाथों से आशीर्वाद देना...
जहाँ हूँ...
जैसा हूँ...
खुश हूँ...
कुछ भी हो...
आख़िर तेरा बेटा हूँ....
खुशी में..गम में...
तुम्हें सदा याद करता हूँ...
आख़िर तेरा बेटा हूँ....
Wednesday, March 24, 2010
आज भी.......
आज भी जब मैं उस शहर को जाता हूँ कभी,
गुजरता हूँ उस गली से जहां मुझे तुम मिली थी;
वो नीम का पेड़ आज वहीँ है खड़ा
नुक्कड़ के मोड़ पे,
वही बताता है मुझे रास्ता उस लेम्प पोस्ट का,
ऐसा लगता है कि कुछ पल को वहां मुझे तुम मिली थी;
पूरी शाम इंतज़ार कर मैं छोड़ आता हूँ शहर को,
उसी बूढ़े लेम्प पोस्ट पर पहली बार मुझे तुम मिली थी;
बहुत बुरा हाल में आज भी वो है वहीँ खड़ा,
अंतिम बार आकर जहां मुझे तुम मिली थी;
दुनिया से नज़रें छुपाकर आज भी पूछता हूँ उसे,
मेरे जाने के बाद कहीं तुम फिर आई थी?
क्या तुम आई थी?
गुजरता हूँ उस गली से जहां मुझे तुम मिली थी;
वो नीम का पेड़ आज वहीँ है खड़ा
नुक्कड़ के मोड़ पे,
वही बताता है मुझे रास्ता उस लेम्प पोस्ट का,
ऐसा लगता है कि कुछ पल को वहां मुझे तुम मिली थी;
पूरी शाम इंतज़ार कर मैं छोड़ आता हूँ शहर को,
उसी बूढ़े लेम्प पोस्ट पर पहली बार मुझे तुम मिली थी;
बहुत बुरा हाल में आज भी वो है वहीँ खड़ा,
अंतिम बार आकर जहां मुझे तुम मिली थी;
दुनिया से नज़रें छुपाकर आज भी पूछता हूँ उसे,
मेरे जाने के बाद कहीं तुम फिर आई थी?
क्या तुम आई थी?
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