आज भी जब मैं उस शहर को जाता हूँ कभी,
गुजरता हूँ उस गली से जहां मुझे तुम मिली थी;
वो नीम का पेड़ आज वहीँ है खड़ा
नुक्कड़ के मोड़ पे,
वही बताता है मुझे रास्ता उस लेम्प पोस्ट का,
ऐसा लगता है कि कुछ पल को वहां मुझे तुम मिली थी;
पूरी शाम इंतज़ार कर मैं छोड़ आता हूँ शहर को,
उसी बूढ़े लेम्प पोस्ट पर पहली बार मुझे तुम मिली थी;
बहुत बुरा हाल में आज भी वो है वहीँ खड़ा,
अंतिम बार आकर जहां मुझे तुम मिली थी;
दुनिया से नज़रें छुपाकर आज भी पूछता हूँ उसे,
मेरे जाने के बाद कहीं तुम फिर आई थी?
क्या तुम आई थी?
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