सहर-एक नयी सुबह

कुछ बातें ऐसी भी होंती हैं जिसे आप ज़माने वालों को बताना चाहते हैं पैर कभी कभी आप कह नहीं सकते....मुझे ऐसा लगता है इस से बढ़िया तरीका कोई नहीं हो सकता है...कहीं इस से किसी का कुछ भला हो सके....
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सहर-एक नयी सुबह

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Wednesday, January 19, 2011

कुछ इस तरह ज़ेहन में वो बस गए.....

खैफ़ बरदोश मत बैठ बादलों के इंतजार में न बरसे हैं न बरसेंगे;
ज़माने की बात मत कर उम्रें निकल जाती है इश्क-ए-इंतजार में..

हवाओं के रुख को रुखसार पे मोड़ने से क्या होगा;
अब तो वो मुश्क भी नहीं मिलती है इश्क-ए-बयार में...

साथ छूटा हाथ छूटा जिंदगी के उस मोड़ पे;
अब तो बस सीधे रास्ते मिलते नहीं वफ़ा-ए-प्यार में...

ओस की बूंदों को कभी अश्क न समझा करो;
शबनम भी अब नहीं मिलती सहर-ए-क्वार में...

अब फलसफे से क्या क्या हासिल होगा "सहर";
तुम तो जिंदगी हार बैठे इम्तहान-ए-प्यार में...

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