खामोश नज़रें...
चुप सी ज़ुबान.....
हम थे तुम्हारे पास बैठे...
एक शहनाई सी बज रही थी...
उन ख्वाबों की दास्तान भी बड़ी अजीब थी.
आज भी उस की खुश्बू मेरी साँसों में घुली है...
जो उन धड़कनों के पास थी...
अब तुम ना हो...
ना ही वो सपने हैं....
फिर भी क्यूँ अब भी लगता है...
जैसे कल की ही ये बातें हैं...
जब हम पहली बार मिले थे...
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