सहर-एक नयी सुबह

कुछ बातें ऐसी भी होंती हैं जिसे आप ज़माने वालों को बताना चाहते हैं पैर कभी कभी आप कह नहीं सकते....मुझे ऐसा लगता है इस से बढ़िया तरीका कोई नहीं हो सकता है...कहीं इस से किसी का कुछ भला हो सके....
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सहर-एक नयी सुबह

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Sunday, January 9, 2011

पुनर्मिलन

बड़े दिन बाद बड़ी उदास लगी शाम

पहलू में उनका दामन...
ओठों पे खामोशियाँ...
लबों पे दूरियों की हिचक...
आँखों में यादों की...
ख्यालों की...
ज़ज्बातों की...
अनचाहे मुलाकातों की...
कुछ हया सिमटी थी पड़ी...
कुछ पल दुनिया ख़ाली सी लगी...
वो पल ख़ाली थे...
वो लम्हें उदास थी...
हर धड़कन को उनकी दूरियों का एहसास था...
आंसू का कतरा न बहा...
सैलाब आ गया...
उन्हें देखा तो लगा..
माहताब आ गया...
ख्वाबों की लर्ज़िशें...
दूरियों की बंदिशें...
मेरी बातों पे उनकी ख़ामोशी...
उनकी बातों मेरा मुस्कराना...
याद आई वो बातें जब अंतिम बार मिले थे..
फिर कब मिलोगे इन शब्दों को उनके लब हिले थे...
जब फिर से मिला तो उन बातों की राख भी न थी...
उनकी ख़ामोशी में वो ज़ज्बात भी न थी....
बढ़ी खामोश थी वो अंतिम मिलन की शाम...
बड़ी उदास है ये पुनर्मिलन की शाम...

बड़े दिन बाद बड़ी उदास लगी शाम....

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